Menu
blogid : 3119 postid : 6

अजब प्रदेश की गजब कहानी

rahi
rahi
  • 16 Posts
  • 27 Comments

देवेन्द्र राय : हर दिन सुबह जगने के बाद तिरंगे का नमन, फिर नित्यकर्म से निवृत होने के बाद तिरंगे और तुलसी के पौधे की विधिवत पूजा। इसके बाद ही और कोई कार्य। पुरुष, महिला और बच्चे सभी के सभी सफेद खादी के वस्त्र पहनने, सूत कातने और कठोर बिस्तर पर आराम के लिए संकल्पित। मांस-मदिरा का सेवन नहीं, दूसरों को भी इसके त्याग की अनवरत शिक्षा। गो सेवा, सबसे प्रेम। प्रताडि़त होने पर भी क्रोध नहीं, बल्कि क्षमा करने की आदत। यहां बात हो रही उन टाना भगतों की, जो तेजी से बदलते माहौल में भी अपने पूर्वजों द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को दिए वचन का ठीक उसी तरह पालन करते हैं, जैसा उन्हें बताया और समझाया गया है। यूं कहें, टाना भगत पीढ़ी दर पीढ़ी पूर्वजों द्वारा स्थापित परंपराओं का पालन करते आ रहे हैं। अब के दौर में, जब स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस को छोड़ अन्य किसी दिन तिरंगे को खास महत्व नहीं मिलता, वहीं टाना भगत किसी भी दिन तिरंगे की पूजा किये बिना अन्न का एक दाना भी ग्रहण नहीं करते। ऐसे में, इन्हें असली गांधीवादी और राष्ट्रवादी कह सकते हैं।
टाना भगत कोई एक आदमी अथवा परिवार नहीं है, बल्कि यह एक मुक्कमल संप्रदाय है, जिसका पिछले 96 साल से झारखंड के रांची, खूंटी और गुमला जिले में अस्तित्व बरकार है। हालांकि, वक्त के थपेड़े में टाना भगतों के कई परिवार लुप्त हो गए। पर, आज भी करीब तीन सौ परिवार इन जिलों में निवास करते हैं। यह अलग बात है कि इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं। इतिहास के झरोखों से देखें तो वर्तमान में गुमला जिले के विशुनपुर प्रखंड अंतर्गत चिंगारी नवाटोली गांव के एक साधारण उरांव परिवार में 1888 में इस संप्रदाय के संस्थापक जतरा भगत का जन्म हुआ। बचपन से ही कुछ अलग स्वभाव के जतरा भगत ने 26 साल की उम्र में एक अनोखा आंदोलन शुरू किया। तब यहां के आदिवासी समाज में मांस व मदिरा का सेवन घर-घर होता था और अधिकतर लोग जंगलों में वन्य जीवों का शिकार कर पेट भरते थे। जतरा को यह सब ठीक नहीं लगा। सो, उन्होंने 1914 में इनके बीच मांस-मदिरा का त्याग करने, जीवों की हत्या नहीं करने, यज्ञोपवित धारण करने, आंगन में तुलसी का पौधा लगाने, भूत-प्रेत का अस्तित्व नहीं मानने, गो सेवा करने, सभी से प्रेम करने, गुरुवार को खेतों में हल नहीं चलाने, बेगार नहीं करने और अंग्रेजों का आदेश नहीं मानने का उपदेश देना प्रारंभ किया। अंग्रेज शासकों को यह बेहद नागवार गुजरा और जतरा को उनके सात अनुयायियों के साथ जेल में बंद कर दिया। करीब डेढ़ साल बाद उन्हें इस शर्त पर रिहा किया गया कि वे अपना प्रचार बंद कर देंगे। लेकिन, जतरा नहीं माने और शर्त तोड़ते हुए अपना अभियान जारी रखा। आगे 1918 में उनकी मृत्यु हो गई। पर, जतरा के समर्थकों का अभियान जारी रहा। आगे जब महात्मा गांधी रांची आए तो उनसे टाना भगतों को मिलवाया गया। गांधी जी इनसे मिलकर बेहद उत्साहित हुए, जबकि गांधी जी से मिलने के बाद टाना भगत कांग्रेसी हो गए। उन्होंने अपने नियमों में नियमित सूत कातने और घरों पर तिरंगा लगाने, उसकी नियमित पूजा करने को शामिल किया। इसके अलावा अंग्रेजों को भू-कर नहीं देने का भी फैसला किया। नतीजा यह कि अंग्रेजों ने इनकी सारी जमीन नीलाम कर दी। बाद में आजादी मिलने पर भूमि वापसी के कानून बने, लेकिन इन्हें खास लाभ नहीं हुआ। टाना भगत आज भी अपने पुरखों की जमीन पर अधिकार के लिए दर-दर की ठोकर खा रहे हैं। इनकी सुनने वाला कोई नहीं। बावजूद इसके टाना भगतों ने गांधीवादी रास्ता नहीं छोड़ा है। कह सकते हैं, यह अजब प्रदेश की गजब कहानी है। (समाप्त)

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh