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यूं ही नहीं भुला सकते

rahi
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पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांगे्रसी नेता डा. सिद्धार्थ शंकर राय हमारे बीच नहीं रहे। उनका पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया है। पर, सहसा विश्वास नहीं होता कि देश की राजनीति के एक शिखर पुरुष ने हम सबसे विदा ले लिया है। उनके विचार, कृतित्व और सिद्धांत हमेशा अमर रहेंगे। मानूदा के रूप में हम सभी के दिलों पर राज करने वाले डा. राय को कोई यूं ही नहीं भुला सकता। उनका योगदान अप्रतिम है। 1972 से 1977 तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे डा. राय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के काफी करीब थे। वे एक कुशल प्रशासक व मंजे हुए राजनेता के तौर विख्यात रहे हैं। उन्हें बंगाल में तेजी से फैलते नक्सल आंदोलन को सख्ती के साथ दबाने के लिये कठोर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। लेकिन, डा. राय इससे कतई विचलित नहीं हुए। उन्होंने तब साफ कहा था कि लोकतंत्र में हिंसा का कोई स्थान नहीं है। किसी भी संगठन अथवा व्यक्ति को आम आदमी की शांति भंग करने, असुरक्षा का माहौल निर्मित करने अथवा विकास कार्यों में व्यवधान डालने की इजाजत नहीं दी जा सकती। यदि किसी को अपनी बात कहनी है, या फिर व्यवस्था के प्रति विरोध प्रकट करना है, तो उन्हें लोकतंत्र के रास्ते अपनी बात रखनी चाहिए। आज पुन: नक्सलवाद देश की बड़ी समस्या बन चुका है और केंद्र सरकार से लेकर नक्सल प्रभावित राज्यों का नेतृत्व तक डा. राय के विचारों से ना सिर्फ सहमत दिखता है, बल्कि कमोवेश उन्हीं के रास्ते चलकर इस विकट समस्या का समाधान तलाशने की कोशिश की जा रही है। डा. राय वर्ष 1986 से 1989 तक पंजाब के राज्यपाल भी थे। तब वहां आतंकवाद सिर चढ़कर बोल रहा था। इसको कम करने में डा. राय की भूमिका की प्रशंसा होती है। उन्होंने वहां और भी कई मील के पत्थर गाड़े। लोकप्रिय राजनेता के साथ प्रसिद्ध अधिवक्ता रहे डा. राय उर्फ मानूदा ने शनिवार की शाम करीब पौने सात बजे हाजरा के बेलतल्ला स्थित अपने निजी निवास पर अंतिम सांस ली। उनके निधन से प. बंगाल समेत समूचा देश गम में डूबा हुआ है। डा. राय अनोखे व्यक्तित्व के मालिक थे। विचारधारा के स्तर पर धुर विरोधी होने के बावजूद ज्योति बसु उनके आजीवन घनिष्ठ मित्र रहे। इसी साल जनवरी में बसु के निधन से बेहद दुखी हुये डा. राय ने कहा था, अब उनके भी जाने का वक्त हो गया है और दस महीने बाद ही मानूदा हम सभी को छोड़ गये। वे अंत समय तक बंगाल के विकास को लेकर काफी चिंतित रहा करते थे। इसके लिए यहां के तमाम नेताओं संग चर्चा करने के साथ उन्हें राह दिखाया करते थे। तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी हमेशा उनसे मार्गदर्शन पाती रही हैं। वाममोर्चा के लोग भी उनसे जब-तब सलाह-मशविरा के लिए पहुंचते थे। अब हम सभी के लिए डा. राय के विचारों को मूर्त रूप देने के साथ अधूरे सपनों को साकार करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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