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पश्चिम बंगाल में बर्दवान जिला के रायना इलाके में पहली दिसंबर को भड़की राजनीतिक हिंसा नई नहीं है। यह आग राज्य में बांग्लादेश की सीमा से सटे जिलों में पहले से फैली हुई है, जो अब अंदर तक जा पहुंची है। ‘इलाका दखल’ के नाम पर जारी इस खूनी खेल में नदिया, मालदा, मुर्शिदाबाद, उत्तरी-दक्षिणी चौबीस परगना व दिनाजपुर जिले में अब तक सैकड़ों जानें जा चुकी हैं। बांग्लादेश की सीमा पर अर्से से भड़की हिंसा की इस आग में ‘पेट्रोल’ डालने वाले कोई और नहीं वही लोग हैं, जो इन दिनों राज्य की तकदीर लिखने का ठेका लेने को व्यग्र हैं। माकपा जहां अपने सुरक्षित किलों को बचाने के लिए हर कीमत चुकाने को तैयार है, वहीं तृणमूल इन किलों पर कब्जा के लिए किसी कुर्बानी से पीछे हटना नहीं चाहती। जबकि, दूसरे दल इस लड़ाई में पीछे छूट चुके हैं। इस बीच वाममोर्चा पर अपने चौंतीस साल के शासनकाल में बांग्लादेश की सीमा से सटे जिलों में बड़े पैमाने पर घुसपैठियों को वैध भारतीय नागरिक बनाकर बसाने का आरोप है। वाममोर्चा के कुछ अन्य प्रमुख घटक दलों पर भी यह आरोप लगता रहा है। बताते हैं, राज्य में ऐसे वोटरों की तादाद तकरीबन दो करोड़ पहुंच गई है। यह सभी संबंधित दलों के समर्पित वोटर हैं और इनके इलाके में किसी दूसरी राजनीतिक पार्टियों के लोगों को घुसने तक की इजाजत नहीं है। जिस किसी ने घुसने की कोशिश की, उसे जान से हाथ धोना पड़ा। कलातांर में यह सियासी हलकों में ‘इलाका दखल’ के नाम से जाना जाने लगा। ऐसा नहीं कि यह सब वाम दलों ने ही किया। कुछ स्थानों पर कांग्रेस सहित अन्य क्षेत्रीय दलों ने भी ‘इलाका दखल’ किया। वैसे, समय-समय पर कबीलाई अंदाज में वर्चस्व टूटता और बदलता भी रहा है। लेकिन, अब भी सर्वाधिक ‘इलाका दखल’ माकपा के पास है, जिसे अब तृणमूल कांग्रेस छीनने पर आमादा है। दरअसल, शहरी क्षेत्रों में कमोवेश आधार खड़ा करने के बाद अब ममता बनर्जी राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में माकपा के ही अंदाज में उसे जवाब देने की कोशिश कर रही हैं। इसके लिए उन्हें चाहे माओवादियों से हाथ मिलाने की मजबूरी हो, या फिर ‘इलाका दखल’ जैसा खूनी खेल, उनकी पार्टी पीछे हटना नहीं चाहतीं। मजे की बात यह कि इस कठोर सच को न तो माकपा और न ही तृणमूल कांग्रेस स्वीकार करती है। सभी अपने को इस खेल से दूर बताते हुए कहते हैं कि संबंधित इलाकों में शतप्रतिशत लोग पूरी तरह से उनके समर्थक हैं, जो पार्टी की नीतियों व सिद्धांतों से जुड़े हुए हैं। इनमें से किसी को भी बलपूर्वक पार्टी समर्थक नहीं बनाया गया है। जहां तक राज्य की सरकारी मशीनरी का सवाल है तो वह बांग्लादेश की सीमा से घुसपैठ कराने और अवसर देखकर घुसपैठियों को भारत की वैध नागरिकता प्रदान कराने के धंधे की बात स्वीकार करती है, लेकिन ‘इलाका दखल’ जैसी बातों को सच नहीं मानती। पर, केंद्रीय खुफिया सूत्रों के हिसाब से ऐसा नहीं है। कुछ राजनीतिक दल वोट बढ़ाने के लिए बांग्लादेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में इस तरह के खतरनाक खेल खेलने में लगे हुए हैं। सुझाव है कि राष्ट्रहित में इस खतरनाक खेल को तत्काल रोका जाना चाहिए।
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