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माओवादियों से भिडऩा ममता की मजबूरी

rahi
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मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने माओवादियों को यदि खुली चुनौती दी है, तो यह उनकी राजनीतिक मजबूरी भी है। ऐसा नहीं करने पर जंगलमहल से तृणमूल कांग्रेस के सफाया का खतरा पैदा हो रहा था। सो, ममता ने अंतत: नक्सलियों के खिलाफ आपरेशन ग्रीन हंट को हरी झंडी दिखाने का फैसला किया। उनका लक्ष्य है, हाल के दिनों में माओवादियों के हाथों एक के बाद एक मारे जा रहे तृणमूल समर्थकों की वजह से डरे पार्टी कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाना। इसके लिए ममता अब कुछ भी करने को तैयार हैं।
इससे पहले विधानसभा चुनाव तक माकपा बनाम तृणमूल की लड़ाई में माओवादी परोक्ष रूप से तृणमूल के पक्ष में खड़े रहे। यह आरोप माकपा की तरफ से लगातार लगाया जाता रहा है। पर, आगे तृणमूल के सत्ता में आने के बाद माओवादियों की अपेक्षा एकदम से बढ़ गई। उन्होंने जहां विभिन्न जेलों में बंद अपने साथियों की तत्काल रिहाई का दबाव बनाना शुरू किया, वहीं जंगलमहल से संयुक्त सुरक्षा बलों की वापसी की मांग के साथ विकास कार्यों में रोड़ा अटकाने लगे। इतना ही नहीं उन्होंने तृणमूल नेताओं की हत्या भी शुरू कर दी, जो अभी जारी है। इसका सीधा असर जंगलमहल में सक्रिय तृणमूल नेताओं व कार्यकर्ताओं पर पड़ा, वे निष्क्रिय होने लगे। इसका लाभ उठाकर अब प्रमुख विपक्षी पार्टी माकपा ने तेजी से अपने बिखरे कैडरों को समेटने और उन्हें सक्रिय करने की मुहिम छेड़ दी है। ऐसे में, ममता के लिए जरूरी हो गया है कि वे अपनी पार्टी के लोगों का टूटा हुआ मनोबल फिर से वापस लौटाएं। यही कारण है कि उन्होंने माओवादियों के गढ़ में लगातार दो बार घुसकर उन्हें चुनौती दी, ताकि तृणमूल के लोग बेखौफ होकर अपनी गतिविधियां जारी रख सकें। साथ ही ममता ने इस इलाके में बड़े पैमाने पर विकास योजनाएं शुरू करने की घोषणा करके वहां के लोगों का दिल जीतने की कोशिश भी की है। साथ ही तृणमूल ने अपने समर्थकों के सहारे जंगलमहल में जनजागरण मंच और भैरववाहिनी नाम से दो संगठन भी खड़ा किया है। जनजागरण मंच नक्सल प्रभावित इलाकों में पदयात्रा निकाल रहा है, जबकि भैरववाहिनी गांवों में लोगों को माओवादियों के खिलाफ संगठित करने में लगी है। यह लोग सुरक्षा बलों व पुलिस को सूचनाओं के अदान-प्रदान में भी सहयोग कर रहे हैं। इन दोनों संगठनों को नेतृत्व स्तर पर तृणमूल सांसद शुभेन्दु अधिकारी व राज्य के स्वरोजगार मंत्री शांतिराम महतो सहित अन्य पार्टी विधायकों की सीधी मदद मिल रही है। जबकि, केंद्रीय मंत्री व वरिष्ठ तृणमूल नेता मुकुल राय का भी इन संगठनों को सक्रिय सहयोग प्राप्त है। लेकिन, हाल के दिनों में माओवादियों के बढ़े हौसलों को देख तृणमूल के यह दोनों संगठन भयभीत बताए जाते हैं। शायद यही कारण है कि ममता बनर्जी अब सीधे हस्तक्षेप करते हुए अपनी पार्टी के लोगों को भयमुक्त करने में जुट गई हैं।

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