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विकास और खुशहाली के नए ‘सूत्र’ देगा बिहार

rahi
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देवेन्द्र, मुजफ्फरपुर

बिहार और बिहारी वैश्विक पटल पर दमदार ‘ब्रांड’ बने हुए हैं। कोई अच्छे संदर्भ में, तो कोई और कुछ… के तौर पर इन्हें पेश करता रहता है। जबकि, ‘कुछ भी करेगा, कहीं भी करेगा’ की तर्ज पर इस माटी के लोग हर क्षेत्र में ‘जलवा’ बिखेर रहे हैं। कह सकते हैं, बिहारियों में देश-प्रदेश की दशा-दिशा निर्धारित करने की पर्याप्त कूबत है। वर्तमान गति-प्रगति को देख उम्मीद है कि नए वर्ष में इसके कई सफलतम आयाम देखने को मिल सकेंगे।

परंपरा और आधुनिकता की अनूठी तस्वीर पेश करने वाला बिहार सदियों से बदलाव का झंडाबरदार रहा है। गौरवशाली इतिहास से सुशोभित यहां के लोगों की राजनीतिक चेतना का लोहा हर कोई मानता है। विधानसभा चुनाव के ताजा परिणामों के जरिए इसने राष्ट्रीय राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। आने वाले दिनों में देश की राजनीति पर इसका कितना असर होगा? यह अभी भविष्य के गर्भ में है। लेकिन, इस वजह से एक नई बहस और परिवर्तन की मुहिम जरूर शुरू हो चुकी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कुशल राजनीतिक प्रबंधन एवं उनके समावेशी विकास का एजेंडा इसके मूल में है। राष्ट्रीय स्तर पर सूबे को अभी पिछड़ा व बीमारू की संज्ञा से भले ही निजात न मिली हो, लेकिन यहां के लोगों की क्षमता पर संदेह नहीं किया जा सकता। दूरदृष्टि व कड़ी मेहनत से पिछड़ापन के सारे कलंक बखूबी धोए जा सकते हैं। इतिहास गवाह है कि आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक, प्रशासनिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक समेत कई क्षेत्रों में प्रदेश की महती भूमिका रही है। इस दौर में भी देश ही नहीं दुनिया भर में बिहारी प्रतिभा की चमक बखूबी देखी जा सकती है। अब जरूरत इस प्रतिभा के सही इस्तेमाल की है, जो बिहार और देश के संदर्भ में समर्पित हो। इसके लिए योजनाबद्ध तरीके से कदम बढऩा चाहिए। यदि ईमानदार कोशिश होगी, तो निश्चय ही काफी हद तक कामयाबी मिल सकेगी। अभी यहां सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक मोर्चे पर है। नीतीश सरकार अपेक्षाकृत सजग दिख रही है। लेकिन, समस्याएं विकराल हैं और संसाधन बेहद सीमित। हमारा प्रदेश कृषि प्रधान है। इसलिए, जरूरी है कि कृषि क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाई जाए और बरकरार रखा जाए। राज्य का कृषि रोडमैप इसे ध्यान में रखकर बनाया गया है। बिहार चीनी का एक बहुत बड़ा उत्पादक राज्य आसानी से बन सकता है। चावल एवं चीनी उद्योगों के अवशिष्टों से वनस्पति, कागज, स्प्रीट, अल्कोहल आदि उद्योग विकसित किए जा सकते हैं। कृषि आधारित उद्योगों की यहां अपार संभावनाएं हैं। हमें पारंपरिक खेती को आधुनिक बनाने की ओर ठोस पहल करनी होगी। किसानों के समग्र उत्थान के लिए कृषि उत्पादों का बेहतर बाजार उपलब्ध कराने के साथ बिचौलियों से पार पाना भी महत्वपूर्ण है। साथ ही असंगठित कामगारों को कृषि क्षेत्र से गैर कृषि क्षेत्र में ले जाने की कोशिश भी तेज करनी होगी। इसके लिए मध्य से लंबी अवधि की रणनीति तैयार करनी चाहिए। ढांचागत सुविधाओं में बढ़ोतरी करके शहरीकरण की प्रक्रिया तेज करने के साथ वहां आर्थिक गतिविधियां बढ़ाने की आवश्यकता है। बड़े गांवों को छोटे कस्बों में परिवर्तित करना भी वक्त की मांग है। सड़क निर्माण, बिजली सहित कुछ अन्य क्षेत्रों में बेहतर काम हो रहा है। इसकी गति और बढ़ाते हुए सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण, जलनिकासी व जल प्रबंधन आदि पर भी विशेष ध्यान देना होगा। यह अच्छी बात है कि प्रशासन पहले की तुलना में अपेक्षाकृत कुछ ज्यादा सक्रिय-सजग हुआ है, लेकिन उसे अभी और प्रभावी व पारदर्शी बनाया जाना चाहिए। सूबे में कानून का राज पूरी तरह से कायम करना बेहद आवश्यक है। इसके बिना अपेक्षित प्रगति हासिल नहीं की जा सकेगी। साथ ही लालफीताशाही खत्म करके निचले व मध्य स्तर की अफसरशाही में क्षमता निर्माण करना होगा। पंचायत स्तर के जनप्रतिनिधियों की कार्यशैली में अपेक्षित सुधार अभी बाकी है। इस दिशा में शीघ्र समूचे राज्य में व्यापक स्तर पर अभियान चलाया जाना समय की मांग है। शिक्षा के क्षेत्र में अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। खासतौर से उच्च शिक्षा में गुणवत्ता सुधार एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। हालांकि, बीते दस सालों में बिहार ने कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उत्साहजनक प्रगति की है। इस अवधि में 17.99 फीसद की दशकीय सकल राज्य घरेलू उत्पाद दर हासिल करके यह राज्य देश में सर्वोच्च रहा है। प्रतिव्यक्ति आय में 16.33 फीसद यौगिक वृद्धि सराहनीय है। जाहिर है, अभी बिहार की अर्थव्यवस्था सशक्त और टिकाउ दिख रही है। अब उम्मीद की जानी चाहिए कि ‘नीतीश निश्चय-विकसित बिहार के सात सूत्रÓ पर जिस तेजी के साथ काम हो रहा है, उसके सुनहरे परिणाम जल्द सामने आ सकते हैं। साथ ही यह राज्य आने वाले दिनों में देश का सिरमौर बनते हुए अपनी विलक्षण राजनीतिक चेतना के बूते आर्थिक संपन्नता और समावेशी विकास के सफल सूत्र देने में भी समर्थ हो सकेगा।

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